यशपाल शर्मा, लुधियाना
भारतीय जनता पार्टी की ओर से इस बार लुधियाना पश्चिमी चुनाव में किसी कदृावर नेता को चुनाव की कमान थमाने की बजाय लंबे समय से संगठन की कारगुजारी संभालने वाले जीवन गुप्ता पर चुनावी दांव खेल दिया है। भाजपा के लोकल नेताओं में पिछले लंबे समय से इस बात को लेकर भी नाराजगी रही है कि पार्टी में मौजूद सीनियर नेताओं को चुनाव लड़ने का मौका देने की बजाय किसी बाहरी नेता को टिकट थमा दिया जाता है। जबकि पार्टी हाईकामान ये केवल इसलिए करता आया है कि भाजपा के लोकल नेताओं की पब्लिक के बीच में बहुत अधिक जनाधार नहीं है। यही कारण है कि पिछले विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल से भाजपा में आए एडवोकेट बिक्रम सिद्धू को चुनाव मैदान में उतार गया, जबकि इस दौरान भी जीवन गुप्ता टिकट के दावेदारों की लाइन में खडे़ थे। लेकिन पार्टी के बाहर से आने के बावजूद बिक्रम सिद्धू बेहतर प्रदर्शन करने में कामयाब रहे और वे अकेले अपना दम पर 28 हजार के करीब वोट ले गए, क्यों कि ये चुनाव भाजपा ने बिना शिअद गठबंधन के लड़ा था और शिअद से महेश इंद्र सिंह ग्रेवाल चुनाव में उतारे गए थे। इसके बाद साल में 2022 में भाजपा हाईकमान ने बड़ा बाउंसर फैंकते हुए कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिटटू को अपनी पार्टी में शामिल कर उन्हें लुधियाना संसदीय चुनाव लड़ने का टिकट थमा दिया। जबकि इस दौरान भी जीवन गुप्ता का नाम भाजपा से टिकट लेने वाले इच्छुक उम्मीदवारों में शामिल था। ये चुनाव संसदीय चुनाव था और पूरे देश में ये चुनाव भाजपा की ओर से लड़ा भी नरेंद्र मोदी के नाम पर जा रहा था और इस चुनाव में श्री राम मंदिर निर्माण व इसके शुभआरंभ का तड़का भी साथ था। इसलिए रवनीत सिंह बिटटू का इस चुनाव में प्रदर्शन भी चमत्कारी रहा। भले ही वे ये चुनाव हार गए, लेकिन इस क्षेत्र के दायरे में आती शहरी विधानसभा सीटों में वे कांग्रेस व आम आदमी पार्टी उम्मीदवारों को पटकनी देने में कामयाब रहे। लेकिन अगर अब के चुनावों की बात की जाए, इस समय न तो नरेंद्र मोदी का चेहरा कोई मुददा है और श्री राम मंदिर का कोई तड़का है। ऐसे में भाजपा उम्मीदवार जीवन गुप्ता के लिए बतौर संगठन नेता की भूमिका में रहने के बाद इस चुनाव में पहला सबसे बड़ा चैलेंज एडवोकेट बिक्रम सिद्धू के 28 हजार वोट के आंकडे़ को पार करना होगा। भाजपा नेता व कईं कार्यकर्ता इस बार भी अपनी जीत के प्रति इसलिए भी आश्वस्त हैं कि क्यों कि वे सोचकर चल रहे हैं कि लोकसभा चुनाव की तरह वे इस बार भी 150 के करीब बूथ में जीत हासिल करेंगे, लेकिन इस बार बिना श्री राममंदिर व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे वाला प्रचार कहीं भी नहीं हैं और ऐसे में संगठन नेता को जनता के बीच में उतार कर ये चुनाव जीतना उतना आसान नहीं होगा। इस अहम कारण के अलावा दो अन्य कारण भी ऐसे हैं, जिनके चलते भाजपा उम्मीदवार के चुनावी नतीजों उम्मीदों के उस पार जाने में बड़ा रोड़ा बन सकते हैं।
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भाजपा कैंडीडेट को चुनाव मैदान में उतारने की भी देरी
भाजपा के दिग्गज नेता इस समय उम्मीदवार जीवन गुप्ता के लिए जमकर चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं और एड़ी चोटी का जोर भी लगाते दिख रहे हैं। लेकिन कहीं न कही भाजपा की ओर से जीवन गुप्ता को चुनाव मैदान में देरी से लाया गया है। पार्टी में संगठनात्मक तौर पर जीवन गुप्ता भले ही सीनियर नेता हैं, लेकिन आम पब्लिक में वे इतना चर्चित नाम नहीं कि इतने कम समय में वे पब्लिक की वोट को चुनावी जीत में बदल सके। जबकि संसदीय चुनाव में रवनीत सिंह बिटटू को प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा मिलना और उनका लगातार दो बार इस सीट से सांसद रहना भी उनके वोट बैंक को मजबूत बनाता दिखा था। लेकिन वहीं इस टिकट के दो अहम दावेदाराें में डा. बिक्रम सिद्धू और राशि अग्रवाल का भी नाम था, इन्हें टिकट न देकर पार्टी ने जीवन गुप्ता को ये टिकट दी। लेकिन ऐसे में ये दोनों नेता अब जीवन गुप्ता के साथ दिल से चलते हैं या केवल फोर्रमेलटी कर निकल जाते हैं, ये इस चुनाव के नतीजे बताएंगे। पार्टी की ओर से जीवन गुप्ता को टिकट देने के पीछे बनिया वोट का भी पैरामीटर देखा जा रहा है। इस विधानसभा के अधिकतर बनिया परिवार में शहर के नामी घराने भी हैं, जो पहले से चुनाव प्रचार में उतरे अन्य कैंडीडेंटस के साथ अपनी वोट कमिट कर चुका है। इतना ही नहीं शहर के बडे़ दिग्गज कारोबारी घराने में भी आप उम्मीदवार की अच्छी पैठ हैं और ऐसे में जीवन गुप्ता का राह इतनी आसान नहीं दिखाई दे रही जबकि दूसरी ओर सिख चेहरे की बजाय भाजपा की ओर से हिंदू चेहरा मैदान में लाए जाने से कहीं न कहीं सिख वोट का फायदा इस बार शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार व मान गुट से उतारे गए उम्मीदवार को मिल सकता है। ऐसे में वोटों के इस बटवारे में भाजपा की उम्मीदों को झटका भी लग सकता है।
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कुबेर के मामले में आप व कांग्रेस के उम्मीदवार से हल्का भाजपा कैंडीडेट
लुधियाना पश्चिमी विधानसभा चुनाव में उतारे गए हर उम्मीदवार को पता है कि इस चुनाव में जीत हासिल करने के बाद उन्हें काम करने के लिए मात्र डेढ़ साल का समय मिलना है। जहां एक ओर आम आदमी पार्टी की ओर से संजीव अरोड़ा को अपना उम्मीदवार बनाया गया, जो धन कुबेर और प्रॉपर्टी के मामले में उनकी रिटर्न शिअद के पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल के मुकाबले भी अधिक है और वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के उम्मीदवार जो कि पूर्व सत्तासीन सरकार में कैबिनेट मंत्री का लुत्फ उठा चुके है और ऐसे में धन कुबेर व फंड के मामले में वे भी किसी से कम नहीं है। इन दो दिग्गज उम्मीदवारों के लिहाज से भाजपा को भी धन कुबेर के मामले में स्ट्रांग कैंडीडेट लाए जाने की चर्चा भी चली थी। जो चुनाव में पार्टी से मिलने वाले फंड के अलावा खुद से भी दो चार करोड़ खर्च कर सके। लेकिन हाईकमान ऐसा कोई जलवा नहीं दिखा पाया और मैदान में उतारे गए भाजपा उम्मीदवार जीवन गुप्ता धन कुबेर में इतने अधिक स्ट्रांग नहीं हैं। लुधियाना पश्विमी चुनाव में आप व कांग्रेस उम्मीदवार साम, दंड, भेद सभी तरह के हथकंडे़ इस चुनाव में इस्तेमाल करते दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इस मामले में भाजपा उम्मीदवार बेहद पीछे दिख रहे हैं।
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Yashpal Sharma (Editor)